शेर का डर नहीं जितना टपके का
शेर ने समझा कि आ गया टपका , जो बुढ़िया बता रही थी। वह यही टपका जान पड़ता है। शेर भीगी बिल्ली की तरह खड़ा रहा धोबी उछलकर शेर की पीठ पर बैठ गया। आगे गर्दन के बाल पकड़े और दो एड पेट पर लगाई और कहा ! चलो बेटा
जंगल से करीब 1 मील की दूरी पर एक गांव था रात के समय गांव में प्रायः जंगली जानवर घूम जाते थे और गांव के बाहरी हिस्से में चौपायों को मार जाते थे कभी-कभी आदमी भी शिकार होते - होते बच जाते थे
गांव के बाहरी इलाके में एक बुढ़िया का परिवार रहता था। उसके मकान के पीछे खाली हिस्से में चौपायों का घर था। बुढिया के कमरे के पीछे चौपायों के लिए छप्पर पड़ा था। इस समय घर में एक भी चौपाया नहीं था। इसलिए घर की विशेष देखभाल नहीं की जा रही थी। गांव का कोई भी पशु उसमें आ जाता था, और चला जाता था। बरसात के दिन थे रात के करीब 2:00 बजे थे। आकाश में बादल घिरे हुए थे। बरसात होने ही वाली थी। रह-रहकर बिजली चमक रही थी। थोड़ी देर में बूंदाबांदी के बाद बरसात शुरू हो गई थी। जोर से बादल गरजा तो बुढिया की नींद टूट गई। बुढ़िया के साथ उसका नाती लेटा हुआ था। बुढ़िया उठी तो वह भी उठकर बैठ गया। बुढ़िया ने बाहर झांककर देखा तो पानी बरस रहा था। पिछले वर्ष बुढ़िया की छत टपक रही थी इस वर्ष भी वह डर रही थी। अभी बहुत जोर से वर्षा नहीं हुई थी। अपनी दादी को चिंतित देख कर उस लड़के ने कहा दादी इतनी घबराई हुई क्यों हो?
बुढ़िया ने कहा बेटा पर साल छत खूब टपकी थी। सोचा था बरसात के बाद छत पलटवा लेंगे नहीं पलटवा पाई।
वह बोला ! दादी टपका से डरती हो ? अरे बेटा तुम क्या जानो मुझे इतना शेर का डर नहीं जितना टपके का पीछे चौपायों के घर में छप्पर के नीचे शेर बुढ़िया की बातों को सुन रहा था। शेर बुढिया के कमरे के ठीक पीछे खड़ा था। कमरे की पटान की कड़ियां दीवार के आर-पार थी उन्हीं खाली जगह से आवाज शेर तक पहुंच रही थी। शेर बुढ़िया की बात सुनकर हैरान था , कि टपका ऐसा कोई जीव है जो मुझसे भी अधिक ताकतवर है ? अब तक तो मैं अपने को ही सबसे शक्तिशाली जानवर मानता था।
शेर शिकार के लिए इधर आया था। बरसात शुरू हो जाने पर उसे यहां शरण लेनी पड़ी थी। रिमझिम पानी बरसता रहा और शेर छप्पर में खड़ा-खड़ा टपके के बारे में सोचता रहा।
उसी गांव के धोबी का गधा शाम से ही खो गया था। सुबह 5:00 बजे उसे कपड़े की गठरी लेकर घाट जाना था। इसलिए धोबी सुबह 3:00 बजे जग गया था। बूंदा - बांदी में ही वह गधे को खोजने के लिए निकल पड़ा। हालांकि घुप अंधेरा था , लेकिन जब - जब बिजली चमकती थी। रास्ता नजर आ जाता था।
खोजते खोजते धोबी बुढ़िया के चौपायों के घर के सामने खड़ा होकर इधर- उधर देखने लगा। उसने घर की ओर भी नजर डाली। जैसे ही बिजली कड़की उसे बिजली की चमक में छप्पर के नीचे खड़ा गधा नजर आया। वह घर में चला गया शेर दीवार की तरफ मुंह करके खड़ा था। धोबी गया और उसने कान पकड़ कर दो हाथ पीठ पर जमाए और कहा कामचोर कहीं का यहां खड़ा है तुम्हें कहां - कहां ढूंढे आया।
वह बोला ! दादी टपका से डरती हो ? अरे बेटा तुम क्या जानो मुझे इतना शेर का डर नहीं जितना टपके का पीछे चौपायों के घर में छप्पर के नीचे शेर बुढ़िया की बातों को सुन रहा था। शेर बुढिया के कमरे के ठीक पीछे खड़ा था। कमरे की पटान की कड़ियां दीवार के आर-पार थी उन्हीं खाली जगह से आवाज शेर तक पहुंच रही थी। शेर बुढ़िया की बात सुनकर हैरान था , कि टपका ऐसा कोई जीव है जो मुझसे भी अधिक ताकतवर है ? अब तक तो मैं अपने को ही सबसे शक्तिशाली जानवर मानता था।
शेर शिकार के लिए इधर आया था। बरसात शुरू हो जाने पर उसे यहां शरण लेनी पड़ी थी। रिमझिम पानी बरसता रहा और शेर छप्पर में खड़ा-खड़ा टपके के बारे में सोचता रहा।
उसी गांव के धोबी का गधा शाम से ही खो गया था। सुबह 5:00 बजे उसे कपड़े की गठरी लेकर घाट जाना था। इसलिए धोबी सुबह 3:00 बजे जग गया था। बूंदा - बांदी में ही वह गधे को खोजने के लिए निकल पड़ा। हालांकि घुप अंधेरा था , लेकिन जब - जब बिजली चमकती थी। रास्ता नजर आ जाता था।
खोजते खोजते धोबी बुढ़िया के चौपायों के घर के सामने खड़ा होकर इधर- उधर देखने लगा। उसने घर की ओर भी नजर डाली। जैसे ही बिजली कड़की उसे बिजली की चमक में छप्पर के नीचे खड़ा गधा नजर आया। वह घर में चला गया शेर दीवार की तरफ मुंह करके खड़ा था। धोबी गया और उसने कान पकड़ कर दो हाथ पीठ पर जमाए और कहा कामचोर कहीं का यहां खड़ा है तुम्हें कहां - कहां ढूंढे आया।
शेर ने समझा कि आ गया टपका जो बुढ़िया बता रही थी। वह यही टपका जान पड़ता है। शेर भीगी बिल्ली की तरह खड़ा रहा। धोबी उछलकर शेर की पीठ पर बैठ गया। आगे गर्दन के बाल पकड़े और दो ऐंठ पेट पर लगाई और कहा चलो बेटा।
शेर दौड़ने लगा धोबी ने अपने पैरों के पंजे शेर के आगे वाली कांख में फंसा लिए जिससे वह गिर नहीं। धोबी सावधानी से शेर की पीठ पर बैठा जा रहा था। इसी बीच ज़ोर से बिजली कड़की बिजली की चमक शेर पर पड़ी तो सिर के बाल और रंग देखकर धोबी हैरत में रह गया। उसने सोचा यह तो गधा नहीं कुछ और ही है। अब कुछ कुछ दिखाई देने लगा फिर भी कोई चीज साफ नजर नहीं आ रही थी। उसने देखा कि सामने रास्ते में पेड़ की एक मोटी डाल नीची है। उसे थोड़ा उचक्कर पकड़ा जा सकता है। जैसे ही शेर पेड़ के नीचे से निकला धोबी ने उछल कर डाल पकड़ ली और लटक गया।
शेर ने जब अनुभव किया कि पीठ पर अब तक का नहीं है तो वह पूरी ताकत के साथ जंगल की ओर दौड़ पड़ा। शेर दौड़ते हुए सोचता जा रहा था बुढ़िया ठीक कह रही थी कि शेर का डर नहीं जितना टपके का।
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BACHPAN KI YAADEN
ReplyDeleteHa yaar bachpan ki yaaden is story se judi hain
ReplyDeleteभैया जी कसम से सू मजा दिलाई दियो
ReplyDeleteटिपटिपवा
ReplyDeleteSach m.apna bchpn yad agya baris aa rhi thi to socha yhi pdlu 2003,ya 2004, m.pdi thi aaj tk yaad h same baris.m hi tb gaon m tha aaj delhi m hu..Bda jo ho gya hu job krne lg gya hu.ab to dada ji v nh h vo din ache the kisi ki koi tnsn nh thi aaj bhut h
ReplyDeleteBachpan ki yaade taja hogayi
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