Thursday, 14 September 2017

धरती की शान तू,मनुष्य तू बड़ा महान हे रे आरएसएस गीत

                       धरती की शान तू

धरती की शान तू भारत की संतान
तेरी मुठ्ठियों में बंद तूफ़ान है रे
मनुष्य तू बड़ा महान है भूल मत
मनुष्य तू बड़ा महान है। । २

तू जो चाहे पर्वत पहाड़ों को फोड़ दे
तू जो चाहे नदियों के मुख को भी मोड़ दे
तू जो चाहे माटी से अमृत निचोड़ दे
तू जो चाहे धरती को अम्बर से जोड़ दे
अमर तेरे प्राण....२ मिला तुझको वरदान
तेरी आत्मा में स्वयम भगवान् है रे। ।

.....मनुष्य तू बड़ा महान है
नयनो से ज्वाला तेरी गति में भूचाल
तेरी छाती में छुपा महाकाल है
पृथ्वी के लाल तेरा हिमगिरि सा भाल
तेरी भृकुटि में तांडव का ताल है
निज को तू जान ---२ जरा शक्ति को पहचान
तेरी वाणी में युग का आह्वान हे रे। ।

....मनुष्य तू बड़ा महान है
धरती सा धीर तू है अग्नि सा वीर
तू जो चाहे तो काल को भी थाम ले
पापों का प्रलय रुके पशुता का शीश झुके
तू जो अगर हिम्मत से काम ले
गुरु सा मतिमान --२ पवन सा तू गतिमान
तेरी नभ से ऊँची उड़ान है रे। ।

मनुष्य तू बड़ा महान है रे। ।

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Saturday, 1 July 2017

RSS गुरु दक्षिणा हेतु अमृत वचन। RSS | राष्ट्रिय स्वयं सेवक संघ।

                                       गुरु दक्षिणा हेतु अमृत वचन 


पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी ने कहा " जिस राष्ट्रीय प्रतीक को लेकर वेदकाल से आज तक हम स्फूर्ति पाते रहे ,जिसमे सदियों के उत्थान - पतन के रोमांचकारी क्षणो की गाथाएँ गुम्फित है , जिसमे त्यागी , तपस्वी , पराकर्मी ,दिग्विजयी ,ज्ञानी ,ऋषि -मुनि ,सम्राट ,सेनापति ,कवी ,साहित्यकार ,सन्यासी ,और असंख्य ,कर्मयोगी ,के चरित्रों ,का स्मरण अंकित है ,जहाँ दार्शनिक उपलब्धियों के साथ जीवन होम करने के असंख्य उदाहरण हमारे स्मृति पटल पर नाच उठते है ,यह परम पवित्र भगवाध्वज ही हमारी अखंड राष्ट्रिय परम्परा का प्रतिक बनकर हमारे सामने उपस्थित होता है।" 













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Thursday, 22 June 2017

संघ की प्रार्थना। नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे। प्रार्थना का हिन्दी में अर्थ। हिन्दी काव्यानुवाद। आरएसएस। RSS IN HINDI

संघ की प्रार्थना 


नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे
त्वया हिन्दुभूमे सुखं वर्धितोहम्।
महामङ्गले पुण्यभूमे त्वदर्थे
पतत्वेष कायो नमस्ते नमस्ते॥ १॥

प्रभो शक्तिमन् हिन्दुराष्ट्राङ्गभूता
इमे सादरं त्वां नमामो वयम्
त्वदीयाय कार्याय बध्दा कटीयम्
शुभामाशिषं देहि तत्पूर्तये।
अजय्यां च विश्वस्य देहीश शक्तिं
सुशीलं जगद्येन नम्रं भवेत्
श्रुतं चैव यत्कण्टकाकीर्ण मार्गं
स्वयं स्वीकृतं नः सुगं कारयेत्॥ २॥

समुत्कर्षनिःश्रेयस्यैकमुग्रं
परं साधनं नाम वीरव्रतम्
तदन्तः स्फुरत्वक्षया ध्येयनिष्ठा
हृदन्तः प्रजागर्तु तीव्रानिशम्।
विजेत्री च नः संहता कार्यशक्तिर्
विधायास्य धर्मस्य संरक्षणम्।
परं वैभवं नेतुमेतत् स्वराष्ट्रं
समर्था भवत्वाशिषा ते भृशम्॥ ३॥
॥ भारत माता की जय ॥


प्रार्थना का हिन्दी में अर्थ

हे वात्सल्यमयी मातृभूमि, तुम्हें सदा प्रणाम! इस मातृभूमि ने हमें अपने बच्चों की तरह स्नेह और ममता दी है। इस हिन्दू भूमि पर सुखपूर्वक मैं बड़ा हुआ हूँ। यह भूमि महा मंगलमय और पुण्यभूमि है। इस भूमि की रक्षा के लिए मैं यह नश्वर शरीर मातृभूमि को अर्पण करते हुए इस भूमि को बार-बार प्रणाम करता हूँ।
हे सर्व शक्तिमान परमेश्वर, इस हिन्दू राष्ट्र के घटक के रूप में मैं तुमको सादर प्रणाम करता हूँ। आपके ही कार्य के लिए हम कटिबद्ध हुवे है। हमें इस कार्य को पूरा करने किये आशीर्वाद दे। हमें ऐसी अजेय शक्ति दीजिये कि सारे विश्व मे हमे कोई न जीत सकें और ऐसी नम्रता दें कि पूरा विश्व हमारी विनयशीलता के सामने नतमस्तक हो। यह रास्ता काटों से भरा है, इस कार्य को हमने स्वयँ स्वीकार किया है और इसे सुगम कर काँटों रहित करेंगे।
ऐसा उच्च आध्यात्मिक सुख और ऐसी महान ऐहिक समृद्धि को प्राप्त करने का एकमात्र श्रेष्ट साधन उग्र वीरव्रत की भावना हमारे अन्दर सदेव जलती रहे। तीव्र और अखंड ध्येय निष्ठा की भावना हमारे अंतःकरण में जलती रहे। आपकी असीम कृपा से हमारी यह विजयशालिनी संघठित कार्यशक्ति हमारे धर्म का सरंक्षण कर इस राष्ट्र को परम वैभव पर ले जाने में समर्थ हो।
॥ भारत माता की जय॥


हिन्दी काव्यानुवाद

हे परम वत्सला मातृभूमि! तुझको प्रणाम शत कोटि बार।
हे महा मंगला पुण्यभूमि ! तुझ पर न्योछावर तन हजार॥
हे हिन्दुभूमि भारत! तूने, सब सुख दे मुझको बड़ा किया;
तेरा ऋण इतना है कि चुका, सकता न जन्म ले एक बार।
हे सर्व शक्तिमय परमेश्वर! हम हिंदुराष्ट्र के सभी घटक,
तुझको सादर श्रद्धा समेत, कर रहे कोटिशः नमस्कार॥
तेरा ही है यह कार्य हम सभी, जिस निमित्त कटिबद्ध हुए;
वह पूर्ण हो सके ऐसा दे, हम सबको शुभ आशीर्वाद।
सम्पूर्ण











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Tuesday, 20 June 2017

तू ही राम है, तू रहीम है । प्रार्थना। सर्वधर्म प्रार्थना। विद्यालय स्कूल प्रार्थना।

तू ही राम है, तू रहीम है,
तू करीम, कृष्ण, खुदा हुआ,
तू ही वाहे गुरु, तू येसु मसीह,
हर नाम में, तू समा रहा ।
तू ही राम है, तू रहीम है,.......



तेरी जात पात कुरान में,
तेरा दर्श वेद पुराण में ,
गुरु ग्रन्थ जी के बखान में,
तू प्रकाश अपना दिखा रहा ।
तू ही राम है, तू रहीम है,
तू करीम, कृष्ण, खुदा हुआ,
तू ही वाहे गुरु, तू येसु मसीह,
हर नाम में, तू समा रहा ।


अरदास है, कहीं कीर्तन,
कहीं राम धुन, कहीं आव्हन,
विधि भेद का है ये सब रचन,
तेरा भक्त तुझको बुला रहा ।
तू ही राम है, तू रहीम है,
तू करीम, कृष्ण,
खुदा हुआ,तू ही वाहे गुरु,
तू येसु मसीह,हर नाम में, तू समा रहा ।










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Sunday, 18 June 2017

टपके का डर। शेर की शामत। दादी - नानी के किस्से। बाल मनोरंजन कहानी। जंगल की कहानी

                                   शेर का डर नहीं जितना टपके का

शेर ने समझा कि आ गया टपका , जो बुढ़िया बता रही थी। वह यही टपका जान पड़ता है। शेर भीगी बिल्ली की तरह खड़ा रहा धोबी उछलकर शेर की पीठ पर बैठ गया। आगे गर्दन के बाल पकड़े और दो एड पेट पर लगाई और कहा ! चलो बेटा
जंगल से करीब 1 मील की दूरी पर एक गांव था रात के समय गांव में प्रायः जंगली जानवर घूम जाते थे और गांव के बाहरी हिस्से में चौपायों को मार जाते थे कभी-कभी आदमी भी शिकार होते - होते बच जाते थे


गांव के बाहरी इलाके में एक बुढ़िया का परिवार रहता था। उसके मकान के पीछे खाली हिस्से में चौपायों का घर था। बुढिया के कमरे के पीछे चौपायों के लिए छप्पर पड़ा था। इस समय घर में एक भी चौपाया नहीं था। इसलिए घर की विशेष देखभाल नहीं की जा रही थी। गांव का कोई भी पशु उसमें आ जाता था, और चला जाता था। बरसात के दिन थे रात के करीब 2:00 बजे थे। आकाश में बादल घिरे हुए थे। बरसात होने ही वाली थी। रह-रहकर बिजली चमक रही थी। थोड़ी देर में बूंदाबांदी के बाद बरसात शुरू हो गई थी। जोर से बादल गरजा तो बुढिया की नींद टूट गई। बुढ़िया के साथ उसका नाती लेटा हुआ था। बुढ़िया उठी तो वह भी उठकर  बैठ गया। बुढ़िया ने बाहर झांककर देखा तो पानी बरस रहा था। पिछले वर्ष बुढ़िया की छत टपक रही थी इस वर्ष भी वह डर रही थी। अभी बहुत जोर से वर्षा नहीं हुई थी। अपनी दादी को चिंतित देख कर उस लड़के ने कहा दादी इतनी घबराई हुई क्यों हो?
बुढ़िया ने कहा बेटा पर साल छत खूब  टपकी थी। सोचा था बरसात के बाद छत पलटवा लेंगे नहीं पलटवा पाई।
वह बोला ! दादी टपका से डरती हो ? अरे बेटा तुम क्या जानो मुझे इतना शेर का डर नहीं जितना टपके का पीछे चौपायों के घर में छप्पर के नीचे शेर बुढ़िया की बातों को सुन रहा था। शेर बुढिया के कमरे के ठीक पीछे खड़ा था।  कमरे की पटान की कड़ियां दीवार के आर-पार थी उन्हीं खाली जगह से आवाज शेर तक पहुंच रही थी। शेर बुढ़िया की बात सुनकर हैरान था , कि टपका ऐसा कोई जीव है जो मुझसे भी अधिक ताकतवर है ? अब तक तो मैं अपने को ही सबसे शक्तिशाली जानवर मानता था।
शेर  शिकार के लिए इधर आया था। बरसात शुरू हो जाने पर उसे यहां शरण लेनी पड़ी थी। रिमझिम पानी  बरसता रहा और शेर छप्पर में खड़ा-खड़ा टपके  के बारे में सोचता रहा।
उसी गांव के धोबी का गधा शाम से ही खो गया था। सुबह 5:00 बजे उसे कपड़े की    गठरी  लेकर घाट जाना था। इसलिए धोबी सुबह 3:00 बजे जग गया था। बूंदा - बांदी में ही वह गधे को खोजने के लिए निकल पड़ा। हालांकि घुप अंधेरा था , लेकिन जब - जब बिजली चमकती थी। रास्ता नजर आ जाता था।
खोजते खोजते धोबी बुढ़िया के चौपायों के घर के सामने खड़ा होकर इधर- उधर देखने लगा। उसने घर की ओर भी नजर डाली। जैसे ही बिजली कड़की उसे बिजली की चमक में छप्पर के नीचे खड़ा गधा नजर आया। वह घर में चला गया शेर दीवार की तरफ मुंह करके खड़ा था। धोबी गया और उसने कान पकड़ कर दो हाथ पीठ पर जमाए और कहा कामचोर कहीं का यहां खड़ा है तुम्हें कहां - कहां ढूंढे आया। 
शेर ने समझा कि आ गया टपका जो बुढ़िया बता रही थी। वह यही टपका जान पड़ता है। शेर भीगी बिल्ली की तरह खड़ा रहा।  धोबी उछलकर शेर की पीठ पर बैठ गया। आगे गर्दन के बाल पकड़े और दो ऐंठ  पेट पर लगाई और कहा चलो बेटा। 
शेर दौड़ने लगा धोबी ने अपने पैरों के पंजे शेर के आगे वाली कांख में फंसा लिए जिससे वह गिर नहीं। धोबी सावधानी से शेर की पीठ पर बैठा जा रहा था। इसी बीच ज़ोर से बिजली कड़की बिजली की चमक शेर पर पड़ी तो सिर के बाल और रंग देखकर धोबी हैरत में रह गया। उसने सोचा यह तो गधा नहीं कुछ और ही है। अब कुछ कुछ दिखाई देने लगा फिर भी कोई चीज साफ  नजर नहीं आ रही थी। उसने देखा कि सामने रास्ते में पेड़ की एक मोटी डाल नीची है। उसे थोड़ा उचक्कर पकड़ा जा सकता है। जैसे ही शेर पेड़ के नीचे से निकला धोबी ने उछल कर डाल पकड़ ली और लटक गया। 

शेर ने जब अनुभव किया कि  पीठ  पर अब तक का नहीं है तो वह पूरी ताकत के साथ जंगल की ओर दौड़ पड़ा। शेर दौड़ते हुए सोचता जा रहा था बुढ़िया  ठीक कह रही थी कि शेर का डर नहीं जितना टपके का। 











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